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सिब्बल जी आप कहा हो ?मेरी भी सुनिए !

विज्ञान जगत और मेरा समाज
विज्ञान जगत और मेरा समाज
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आज के समय में हर कोई भारतीय अच्छी इंग्लिश बोलना , इंग्लिश में लिखना और इंग्लिश में ही अपने बच्चो कि पढाई करवाना चाहता है. आज के समय में किसी भी क्षेत्र में एक अच्छी नौकरी पाने के लिए अच्छी इंग्लिश क़ा ज्ञान होना जरूरी है ,कैसे इंग्लिश में बोले? कैसे सही इंग्लिस लिखे? कैसे इंग्लिस में लिखे हुए को समझे ?
तभी तो आज के समय में इंग्लिश मीडियम स्कूल काफी महंगे होते जा रहे है. आज के समय में भारत में हर मीडियम फॅमिली के परेंट्स अपने बच्चो को क़ा दाखिला इंग्लिश मीडियम में ही करवाते है.क्यों कि उनको एक आस रहती है कि इंग्लिश मीडियम में पदने से उनका बच्चा आगे चलकर एक अच्छी नौकरी पा सकेगा. और अपनी जिन्दगी कि जरोरतो को पूरा कर पायेगा . आज के समय में इंग्लिश स्कूलों में पदने वाले बच्चो कि संख्या 2 करोड़ को पार कर गयी है . गरीब माँ बाप भी मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चो को इंग्लिश मीडियम में भेजते है एक आस के साथ कि ताकि उनके बच्चो को उनके जैसी जिन्दगी ना गुजारनी पड़े. आज के समय में भारतीयों ने अपने जीपन यापन के ढंग को भी काफी हद तक सुधारा है . आज के समय में इंग्लिश बोलना व्यक्ति के जीवन स्तर और उसके माहौल को प्रदर्शित करता है . अगर हमारा बच्चा हिंदी मीडियम में पढता है तो हम गरीब है , हमको दुःख होता है कि हमारा बच्चा आगे चलकर प्रतियोगी परीक्षा में पास हो पायेगा कि नहीं और जॉब मिल पाएगी कि नहीं . मगर अफसोश कि बात तो ये है कि हमारे देश में महंगाई ने ऐसी कमर तोड़ राखी है कि हर आम आदमी के हालत ख़राब है . इंग्लिश स्कूलों में पढना तो दूर कि बात सही से खाना पीना भी मुस्किल है.

“साहब मेरे घर का तोता भी कहता है की इंग्लिश में रटना, बोलना सिखाओ मुझे “ . अब देखिये ना आज एके समय में भारत में कुछ ऐसी इंटरनेशनल स्कूल है जिनमे फर्स्ट क्लास से ही एक बच्चे को पढाने क़ा एक महीने क़ा खर्च ६००० से जयादा है . इसी तरह कुछ और भी प्राइवेट स्कूल है जिनमे फीस बहुत महँगी है . इंग्लिश मीडियम के सरकारी स्कूलों कि संख्या हमारे देश में बहुत कम है और जो है भी तो उनके टीचर इंग्लिश में इतने शिक्षित ही नहीं है . अब जरा सोचिये कि क्या ये सही है? .हर तरफ से आम आदमी को ही रोना पड़ता है सरकारी दफ्तर से लेकर सरकारी नौकरी तक ? मजे कि बात तो ये है साहब कि आज कल हर कोई प्राइवेट हॉस्पिटल , प्राइवेट स्कूल , प्राइवेट कॉलेज, प्राइवेट बस , प्राइवेट बैंक ,में जाना पसंद करता है पर फिर भी नौकरी सभी सरकारी चाहते है !.
चलो किसी तरह से जुगाड़ पानी करके हम अपने बच्चो को इंग्लिश मीडियम में पढाते है अच्छी स्नातक कि डिग्री दिलवाते है पर फिर भी एक उम्मीद के अनुसार नौकरी पाने के लाले पड़ जाते है . आखिर कहा है कमी? कैसे सुधार जाये भारत के एजुकेसन सिस्टम को सिब्बल जी जिससे कि बेरोजगारी कम हो जाये ? आप टैक्स पाने के लिए शिक्षा के वियापारियो को इंजीनियरिंग कोलेज , प्राइवेट स्कूल खोलने और चलाने की इजाजत तो दे देते हो पर बाद में ये नहीं देखते कि वो विद्यार्थी को कितना लुटे है.यूनिवर्सिटी से निर्धारित फीस से कही गुना जायदा फीस वसूलते है ये कोलेज वाले. और ना ही ढंग के उपकरण और शुविधा होती है इनमे. और इस से भी बड़ी बात तो ये है कि आप SC/ST के विद्यार्थियों को तो स्कोलरशिप दे देते हो . हर सरकारी नौकरी में उनके लिए सीट फिक्स रहती है . उनको हर एक्जाम में आयु में भी छूट दी जाती है और आवेदन फीस भी बहुत कम होती है. क्या ये जरूरी है कि हर SC/ST वाले भाई बंधू गर्रेब हैं ?. जरा आकर देखिये साहब सामान्य वर्ग में आने वाले लोगो कि हालत भी इकिटने ख़राब है ? अब आप ही बताइये अभी मेरे एक सामान्य वर्ग के बंधू ने गाते 2012 (कंप्यूटर स्सिएंस) की परीक्षा सामान्य वर्ग के लिए पस्सिंग मार्क्स 31.54 थे ओ.बी.सी. वर्ग के लिए 28.39 थे और SC/ST के 21.03. अब सिब्बल जी आप ये बताये कि यहाँ जाती वाद क़ा क्या मतलब एक SC/ST क़ा स्टुडेंट कम मार्क्स लाकर भी उससे कही जायदा मार्क्स लाने वाले सामान्य वर्ग के स्टुडेंट से काफी अच्छी सीट पा ज़ाता है . क्या ये न्याय है ? क्या उस बेचारे क़ा कसूर ये है कि वो जायदा मार्क्स लाया या फिर ये कि वो सामान्य वर्ग से है ?.

नोट: पाठकगण यहाँ ध्यान दे कि मै यहाँ SC/ST वर्ग को मिलने वाली शुविधाओ के खिलाफ नहीं हू बल्कि मै यहाँ सामान्य वर्ग के एक स्टुडेंट कि विय्था को उजागर कर रहा हूँ. और भारत के एजुकेसन सिस्टम पर प्रकाश डालने कि थोड़ी कोसिस की है !

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