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दोस्तों कल शाम हम अपने एक मित्र के साथ बैठे बतिया रहे थे , शहर में एक जादूगर आया हुआ है इन दिनों , शहर के एक सिनेमा हाल में रोज 4 शो चलते हैं उनके जादू के , अचानक से मित्र बोला चलो जादू देखने चलते हैं। उस जादूगर के बड़े बड़े कारनामे सुनने में आये है , चल न जादू देखने चलते हैं.! मै अपने मित्र से बोला भाई पैसे देकर जादू देखने क्यों जाए जब फ्री में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले जादू दिखाने में लगे हुए हैं तो इनके जादू को ही देख लो। मित्र बोला मैं कुछ समझा नहीं , हम बोले हम ही कहा समझ पा रहे हैं बिटवा , बस हम तो देखे जा रहे हैं जादू।
चलो जब कह ही रहे हो तो थोड़ा विस्तार में बता देते हैं तुमको , मगर इसके लिए तुमको जादूनगरी चलना होगा
हमारे साथ , मित्र बोला अब ये जादूनगरी कहा है ? तभी मैं अपने मित्र को शहर के एक ऐसे मोहल्ले में ले गया जहा पर कुछ लोग हाथो में झाड़ू लेकर सड़क साफ़ कर रहे थे , तब मैं ने अपने मित्र से कहा ये है जादूनगरी , बोला अब समझ गया किस जादू की बात कर रहे हो तुम। हम बात कर ही रहे थे कि बातो ही बातो में एक महानपुरुष पर चर्चा होने लगी। वो महान हैं या नही ये तो नही पता , मगर वो जो वाणी बोलते हैं वो जरूर लोगो को मंत्रमुग्ध कर देती हैं, अरे अब का बताये हम , बस कुछ यूँ समझ लीजिये की एक मरीज आदमी पर इतना असर किसी कड़वी दबाई का भी नही होता , जितना कि बीमार और बिना बीमार लोगो पर इनके शब्दों का होता है । पिछले कुछ महीने से देश के कोने कोने में इनका जादू सा छाया हुआ है। देश में ही नही ये साहब तो दुनिया के सबसे ताकतवर देश में भी अपना जादू दिखाकर आ गए हैं।
खैर जादू तो अब छा गया इनका वो भी असरदार तरीके से लेकिन मजा तो तब आयेगा जब लोग कहे सिर्फ बातो में नही इनके काम में भी जादू है। काम भी ऐसा हो जो हर किसी के दिलो पर अपनी एक अनूठी छाप छोड़ दे। लोग उम्मीद लगाए हुए है , विपक्षी भी नजर गड़ाए हुये हैं ,अब तो कुछ तो विपक्षी लोग भी अब इनकी तारीफ़ करने में लगे हैं , बेचारे एक ऐसे ही विपक्षी हाल ही में हाईकमान द्वारा नाप दिए गए , के जरूरत थी उनकी तारीफ़ में मीठे शब्द बोलने की , चुपचाप शान्ति से रहते , तो जमे रहते। इनका एक ऐसा ही एक जादू अभी हाल ही में हर अखवार, हर टी वी. चैनल में दिखाई दिया , वो जादू ऐसा था की बड़े बड़े अरबपति घराने के लोग हाथो में झाड़ू लेकर सड़को पर आ गए। किसी के जादू का इतना गहरा असर मैं ने पहली बार देखा है। कभी कभी सोचता हूँ ” किस की झाड़ू , किसने चला दी”. जिनकी झाड़ू थी वो तो बेचारे वो दिल्ली में झाड़ू चलाओ यात्रा निकालकर ही रह गए, और यहाँ झाड़ू का आईडिया किसी और ने प्रयोग कर लिया। लेकिन ख़ुशी हुयी देखकर सच में ये अभियान किसी जादू से कम नही हैं , हम सबको मिलकर इस अभियान में हिस्सा लेना चाहिए।
हाल ही में एक वाकया तो बिजनौर जिले में ऐसा देखने को मिला की पहले तो दो अलग अलग राजनितिक दल के लोग सड़क पर झाड़ू से जादू दिखा रहे थे , थोड़ी ही देर बाद कुछ कहासुनी हुयी तो उस झाड़ू से एक दुसरे को पीटकर जादू दिखाने लगे।
दुर्भाग्य की बात तो ये है कि , ताली बजाने सब आते है, फोटो लेने वाले भी आते हैं, वीडिओ बनाने वाले भी आते हैं , लेकिन ये तमाशा बस कुछ पलो के लिए होता है और फिर कुछ दिनो बाद इतिहास बन जाता है , सच बात तो ये है की हम बदलाव लाना ही नही चाहते , आदत हो गयी है हमको झेलने की , बस झेले जा रहे हैं , कल तक उनको झला था आज इनको झेलते हैं , हर कोई अपनी दबंगई दिखाकर दूसरो में मूह बंद करने में लगा हुआ है, दुसरो को प्रताड़ित करने में लगा है ,हर गली हर नुक्कड़ पर हर कोई अपने को समजसेवी बोलता है मगर कारनामे ऐसे की बेचारा “समाजसेवी ” शब्द भी कहता होगा लोग मेरा कितना गलत प्रयोग करते हैं। जिस दिन हम अपनी आदतो को बदलना शुरू करगे उस दिन हमको असली जादू दिखाई देगा और उस जादू के जादूगर होंगे खुद हम।
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