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इतने सर्द दिनों में भी तुम …………

विज्ञान जगत और मेरा समाज
विज्ञान जगत और मेरा समाज
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सर्दियों के दिनों में अक्सर जब अपने गांव में रुकता हूँ तो किसान लोगो को खेत में काम करते हुए देख सोचता हू कि इतने सर्द दिनों में और सर्द रातो में भी ये लोग कुछ सपनो को पूरा करने लिए कभी नंगे पाँव सर्दियों की रातो में गेहू के खेत में पानी लगाते हैं तो कभी कोहरे से भरे दिन में गन्ने के खेत में काम करते हैं। इस आस में की इस साल तो बिटिया के शादी हर हाल में करनी है , बेटे की कॉलेज और टूशन फीस भी भरनी है ,शायद इस बार काम जरूर हो जाएगा। ऐसे ही किसानो की व्यथा को इस कविता में व्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू –

इतने सर्द दिनों में भी तुम अक्सर रोज खेत पर जाते हो !
सुबह सुबह कोहरे की ओस से भी नही घबराते हो !

कपकपाते हुए हाथो से फिर गन्ना छिलने लग जाते हो !
दिन भर खेत में काम करते हो देखते हुए उम्मीद के रास्ते !!

सोचते हो जल्दी ही मिलेगा मील से गन्ने का पेमेंट, बेटे की कॉलेज फीस के वास्ते !
कभी बूढ़े बाप के इलाज के लिए , तो कभी बिटिया की शादी के वास्ते !!

बस इन्ही सपनो को लेकर तुम मेहनत करते जाते हो !
इतने सर्द दिनों में भी तुम अक्सर रोज खेत पर जाते हो !!

मील वालो को नही दीखता तुम्हारा ये कठिन परिश्रम !
वो पिछले साल का पेमेंट देने में , अगला साल लगाते है !

पैसो की पड़ती जरूरत तो तुम बैंक के चक्कर लगाते हो !
लोन पास हो जाए किसी तरह से बस यही दुआ मनाते हो !!

कभी बिटिया की शादी तो , कभी बेटे की कॉलिज फीस के वास्ते !
इतने सर्द दिनों में भी तुम अक्सर रोज खेत पर जाते हो !!

ये सिचाई विभाग वाले भी तुमको बहुत ही रुलाते है !
समय पर नहर में पानी नही देते , देते है तो दिन की जगह रात में !

इन ठिठुरती रातो में तुम गेहू के पौधों को पानी देने जाते हो !
इतने सर्द दिनों में भी तुम अक्सर रोज खेत पर जाते हो !

कभी बेटे की कॉलेज फीस के वास्ते तो कभी बिटिया की शादी के वास्ते !

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