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सत्याग्रह से सत्तागृह तक !

विज्ञान जगत और मेरा समाज
विज्ञान जगत और मेरा समाज
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आज कल दिल्ली के गर्माते राजीनितक माहौल की तस्वीर देखता हुँ ,खबरे सुनता हुँ तो एक सत्याग्रह की याद आने लगती है। एक ऐसा सत्याग्रह जिसकी मुहीम अब से ढाई साल पहले समजासेवी अन्ना जी ने जनता के हितो के लिए छेड़ी थी। शायद आजादी के बाद से अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन था यह। देश की सारी जनता इसको जी जान से समर्थन कर रही थी। कुछ प्रत्यक्ष रूप से तो कुछ अप्रत्यक्ष रूप से। बड़ो से लेकर बच्चो तक की जुबान पर एक ही नारा था ” अन्ना नही आंधी है , दूसरा महात्मा गांधी है “. सच में ये सत्याग्रह एक ऐसी आंधी थी जिसने कांग्रेस सरकार की जड़ो को हिलाकर कर रख दिया था। जिसका सीधा फायद भाजपा को हुआ और इन कमजोर पड़ी जड़ो को उखाड़ना भाजपा के लिए और भी आसान हो गया जो की भाजपा पहले से चाहती थी। इस आंदोलन के दौरान आधी जनता दिल्ली में प्रदर्शन कर रही थी ,जो दिल्ली तक नही पहुंच पाये उन्होने अपने शहर , अपने गाव में गली गली में इस आंदोलन को जिन्दा रखा। कई करोडो रुपया देश के कोने कोने से इस आंदोलन के लिए दिल्ली तक पहुचाया गया ताकि एक साफ़ सुथरा लोकपाल बिल पास हो जाए और ये मेहनत बेकार ना जाये। पर यहाँ सवाल ये उड़ता है की क्या जनता को सच में इस आंदोलन का कुछ फायदा हुआ ? जवाब ढूंढे तो हम पायेगे की नही हुआ , जनता का पैसा ही बर्बाद हुआ . अब सवाल ये है की क्या इस आंदोलन का फयदा किसी को नही हुआ ? ऐसा नही है की किसी को फायदा नही हुआ , फायदा तो हुआ पर उन लोगो को जो इस आंदोलन के जरिये दिल्ली की सत्ता पाने के मंसूबे बनाये बैठे थे। जो मंच पर तो अन्ना के साथ बैठे पर दिल से अन्ना के साथ नही थे उनकी आँखों में सत्ता पाने का सपना था। शयद उन्हे आंदोलन के उद्देश्यों से कोई मतलब था ही नही , बाद में ऐसा साबित हुआ जैसे वो बस अन्ना के साथ मंच पर बैठकर दिखावा कर रहे हो। वो सत्याग्रह की नही बल्कि सत्तागृह को हासिल करने की तैयारी कर रहे थे।

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अकसर लोगो से एक बात सुनता हुँ की आज की दुनिया में हर कोई अपना फायदा देखता है , पहले मुझे ये बात थोड़ी गलत लगती थी पर अब सच लगने लगी है कुछ ऐसे चेहरे जिनका राजनीति के क्षेत्र में कोई बजूद ही नही था, न तो उनको कोई जनता था , न ही कोई पहचनाता था। उन्होने इस आंदोलन को अपना हत्यार बनाया और पैसे की कोई कमी थी ही नही वो जनता का ही प्रयोग ही किया गया जो आंदोलन के बाद पैसा बचा हुआ वो भी सब डकार गए ये सत्ता के लोभी। कुछ ऐसे नाम जिनको आज हर कोई जानता है पहचानता है की उन्होने अन्ना के मंच का फयदा उठाकर कुर्सी हासिल की , कुछ ने अपनी अलग पार्टी बनायीं तो कुछ बाजपा में शामिल होकर एम.पी. बन गए। एक महिला तो ऐसी थी की उन्होने तो मतलबीपन की सीमाये ही तोड़ थी , अन्ना के मंच से पहले “आप” को मजबूत देखा तो ‘आप” में शामिल हुयी , जब आप को कमजोर पड़ते देखा तो , पाला बदलकर भाजपा में चली गयी , मैं तो कभी वोट न दू ऐसे लोगो को। 2 दिन पहले एक नई खबर सुनने को मिली तो मेरा कुछ लोगो से और भी विश्वाश उठ गया। एक ऐसी महिला जिनका मैं बहुत आदर करता था , मैं ही नही बल्कि वो देश के सारे महिला समाज के लिए प्रेणना का स्रोत थी ,जब पता चला की उन्होने भी सत्ता के लोभ में अन्ना जी धोखा दे दिया और अन्ना जी से बताये बिना भाजपा में शामिल हो गयी। अब अगर कोई मुझसे ये कहेगा कि नही सब लोग मतलबी नही होते तो मैं समझूगा की वो कोनो और गोले से आया है ई गोले का प्राणी नही है . सच तो ई है की ई गोले पर हर कोई इहा अपना फयदा देखत है बस।

“अन्ना जी आपने जी आपने मेहनत की थी जो भी ,फायदा उठा ले गए उसका बस ये सत्ता के लोभी “

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