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वायुमंडल में घटता ऑक्सीजन का स्तर

विज्ञान जगत और मेरा समाज
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आज सारा विश्व बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का सामना कर रहा है। हाल ही में पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भाग लेने वाले अधिकतर देशो के वरिष्ठ नेताओ ने इस हेतु ग्रीन हाउस गसो के ऊत्सर्जन को कम करने की दिशा में प्रयास करने हेतु कुछ विशेष समझोते किये।  डीजल पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों से निकलने वाले धुएं,कारखानो की चिमनी से  निकलने वाले  धुएं एवं जहरीली गैसो  ने  वातावरण की वायु को दूषित कर दिया है। हाल ही में इसका एक उदाहरण हमे चीन की राजधानी बेजिंग में देखने को मिला जब बेजिंग शहर  की वायु के अत्यधिक दूषित  होने पर वह कुछ दिनों के लिए अलर्ट घोषित कर दिया गया।


हाल ही में हमारे देश की अरजधानी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदुषण की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने एक महत्वपूर्ण उठाया है जिसके तहत देश की  राजधनी  दिल्ली में 1  जनवरी 2016  से  एक दिन सम  और एक दिन विषम अंको वाली गाड़िया चलेगी। अब देखते हैं की यह नियम वायु के बढ़ते प्रदूषण को रोकने में कितना सहायक साबित होता है।


प्रकृति के के साथ बढ़ती मानव छेड़छाड़ ने आज ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को अत्यधिक गंभीर बना दिया है। हाल ही में  चेन्नई में आई बाढ़  भी प्रकृति के साथ मानव की छेड़छाड़ का ही नतीजा है।  चेन्नई  में ईमारतों को बनाते समय , कालोनियों को बनाते समय इस बात की अनदेखी की गयी।वहा  पर मौजद तालाबों और झीलों को मिटा दीया गया , जिसका खामियाजा आज जनता को इस विकराल बाढ़  के रूप में देखने को मिला है।




हाल ही में वैज्ञानिकों ने अपने शोध के परिणामो  को ध्यान में रखते हुए सावधान  किया है कि समुद्री की गहराई में पानी  का तापमान बढ़ने के कारण पृथ्वी के ऑक्सीजन स्तर में लगातार गिरावट हो सकती है। जिसका असर आने वालो  सालों में इंसान और जानवर की मृत्यु दर में व्यापक तौर पर वृद्धि के रूप में हमको देखने को मिल सकता  है।



यदि हम शोध के अनुसार कुछ महासागरों की बात करे तो दुनिया के महासागरों के तापमान में 6 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि देखी गई है। जिसको ध्यान में रखते हुए  वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि साल 2100 तक ऑक्सीजन का उत्पादन रूक सकता है क्योंकि समुद्री तापमान बढ़ने से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में रुकावट  आ सकती है। प्रकाश संश्लेषण द्वारा फाइटोप्लैंकटन (पादप प्लवक) कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग और ऑक्सीजन का उत्पादन (निस्तारण) करते हैं।


फाइटो प्लैंकटन को एक सूक्ष्म शैवाल (माइक्रो एल्गी) और सूक्ष्म जीव के तौर पर जाना जाता है। यह मीठे और खारे पानी के लगभग सभी स्रोतों में पाये जाते  हैं। इंग्लैड की लिसेस्टर यूनिवर्सिटी के मुख्य शोधविज्ञानी सर्गेई पेट्रोवस्की के अनुसार, यह समुद्री फाइटोप्लैंकटन पृथ्वी की लगभग दो-तिहाई ऑक्सीजन का निर्माण करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। समुद्र के पानी के बढ़ते तापमान के कारन इनके खत्म होने का खतरा है। इनके खत्म होने के कारन  हमारे सामने वैश्विक स्तर पर वायुमंडलीय ऑक्सीजन की कमी का संकट ख़डा हो जाएगा।


इन शोधार्थियों के एक समूह ने समुद्र में ऑक्सीजन उत्पादन के लिए एक नया मॉडल विकसित किया है। यह मॉडल  प्लैंकटन समुदाय की ऑक्सीजन उपभोग और निस्तारण जैसी बुनियादी प्रक्रियाओं की गणना करने में सखम है । इस शोध के प्रमुख सर्गेई पेट्रोवस्की का कहना है कि , पिछले दो दशकों में ग्लोबल वार्मिग ने विज्ञान और राजनीति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।  इससे होने वाले परिणामों के बारे में दुनिया को टी वे चैलनो के माध्यम से बहुत कुछ बताया जा चुका है। साथ ही साथ उन्होने यह भी कहा  कि अंटार्टिका में बर्फ के पिघलने से एक विनाशकारी वैश्विक बाढ़ आ सकती है।


इसलिए हमको आने वाली पीडियो के अस्तित्व के लिए ऑक्सीजन के बचाव हेतु अभी से ध्यान देना होगा और व्यक्ति स्तर पर , समहू स्तर पर , राज्यीय , राष्ट्रीय एवं अंराष्ट्रीय स्तर पर इस हेतु अपना सहयोग करना होगा।



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